उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘मैं उस पी० ए० का भ्रम दूर करने के लिए अपना परिचय देने लगी। मैंने कहा, ‘मैं गवर्नर बहादुर की लड़की हूं और वह मेरा नाम जानते हैं।’’
‘‘इस पर मिस्टर पी० ए० बोले, ‘मैं भी तो यही कह रहा हूं कि आपको देखते ही वह आपके लिए जो आप कहेंगी, करने को तैयार हो जायेंगे।’’
‘मैं यहां उनके पास रहने के लिए आयी हूं।’
‘यह असम्भव नहीं है। देखिये, मेरा नाम अज़ीज़ अहमद है। मैं गवर्नर जनरल बहादुर के साथ सन् १९४० से हूं। मैं उनके स्वभाव को अच्छी तरह जानता हूं। इसी कारण मैंने यह कहा था कि आपके रहने का प्रबन्ध हो जायेगा।’
‘मगर मुझे आधा घण्टा से ऊपर इन्तजार करते हो गया है। कब तक और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी?’
‘‘साहब इस वक्त यू० के० के एक बहुत बड़े अफसर से बात कर रहे हैं। कुछ देर तो प्रतीक्षा करनी पडे़गी।’
‘‘तो मैं और इन्तजार कर सकती हूं। आखिर छः हजार मील की यात्रा कर आयी हूं तो कुछ देर क्या, कुछ दिन तक भी इन्तजार की जा सकती है।’
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