उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘अज़ीज़ अहमद इन तीनों वचनों को सुनकर भी मेरी ओर देखता रहा। कुछ विचार कर बोला, ‘बेटी! इतनी देर नहीं लगेगी। मेरा ख्याल है कि अब आधे घण्टे से ज्यादा नहीं लगेगा।’’
‘‘अब अजी़ज़ अहमद ने बात बदल दी और पूछने लगा, ‘आपको मार्ग में कोई कष्ट तो नहीं हुआ?’’
‘जी नहीं! मैं बहुत मजे में आई हूं। इस पाकिस्तानी हवाई जहाज में जो कराची से यहाँ तक लाया है, लंच बहुत रद्दी मिला है।’
‘क्या खराबी थी उसमें?’
‘सर्वथा ‘स्टेल’ (स्वाद रहित था)।’
‘‘मैं इस विषय में पता करूंगा। आप कब तक यहां रहने के लिये आई हैं?’’
‘मैं तो कुछ वर्ष यहां रहकर पाकिस्तान का इतिहास लिखना चाहती हूं।’
‘ओह! इस पर भी ख्याल अच्छा है। मैंने विस्मय इस कारण प्रकट किया है कि इसकी आवश्यकता क्यों अनुभव हुई है?’
‘मैं इतिहास की स्नातिका हूं। एम० ए० इतिहास में किया है और इस काम में रुचि रखती हूं। इसी विचार से यहां आई हूं।’
‘अच्छी बात। मगर इस महल में रहते हुए तो आपको इस जटिल काम के लिए अवकाश ही नहीं मिलेगा। आप गवर्नर जनरल बहादुर से कहकर कहीं एकान्त में मकान ले लें तो सम्भव है कि आप कुछ लिख सकें।’
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