उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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‘मुझे गवर्नमेण्ट हाऊस के एक कमरे में ठहरा दिया गया। दो दिन की निरन्तर यात्रा से थकी हुई मैं उस कमरे में पहुँची तो एक बेयरा चाय ले आया।’
‘‘मैंने बेयरा को देखा तो वह उस क्षेत्र का रहने वाला प्रतीत नहीं हुआ जिसमें के वहां के प्रायः लोग दिखाई दे रहे थे। गवर्नर जनरल ने अपना ‘पर्सनल स्टाफ’ रावलपिण्डी और पेशावर के भीतरी क्षेत्र के रहनेवालों से भरती किया हुआ था और वह बेयरा अपने पहरावे और रूप-रेखा से दिल्ली से पार भारत का रहनेवाला समझ में आ रहा था।’’
‘‘मैंने पूछा, ‘क्या नाम है तुम्हारा?’’
‘‘बेयरा ने सलाम कर बताया, ‘मुश्ताक अहमद।’’
‘‘मैंने अपने लिए चाय बनाते हुए कहा, ‘तुम इधर के रहने वाले मालूम नहीं होते।’’
‘हां, हुज़ूर।’
‘किस शहर के रहने वाले हो?’
‘हुजूर! भारत उत्तर प्रदेश के एक जिला मुरादाबाद का रहने वाला हूं।’
‘ओह! तो तुमने अपना वतन बदल लिया है?’
‘‘बदला नहीं हुजूर! कुछ अर्सा के लिए छोड़कर यहां आ गया हूं। मगर फिर अपने वतन में जाने की उम्मीद करता हूं।’’
‘कब जाना चाहते हो?’
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