उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘कौन?’ मैंने अर्ध चेतना में ही पूछ लिया।
‘‘जब तक मैं कुर्सी पर सीधी हो बैठी, बेयरा मुश्ताक अहमद श्वेत परिधान में एक स्त्री को साथ लिये भीतर आ गया। उसने अपने आने की सफाई दे दी। उसने कहा, हुजूर! आपने मेरी बीवी नसीम से मिलने की ख्वाहिश ज़ाहिर की थी। वह यह है। मैंने इससे कहा तो यह अभी आ गई है। क्योंकि फिर पीछे इसे मेरे लिये खाना वगैरह बनाना होता है।’’
‘बहुत अच्छी किया। बैठो, बहन नसीम।’ मैंने उस स्त्री को एक सामने रखी कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। साथ ही उसके पति से कहा, अब तुम जा सकते हो। मैं इससे कुछ देर तक बातचीत करूंगी।’
‘मुश्ताक कमरे के बाहर निकला तो मैंने मुस्कराते हुए पूछ लिया, ‘तुम कहां की रहने वाली हो? तुम्हारा खाविन्द तो गहरे रंग का और दुबला-पतला व्यक्ति है। तुम उज्ज्वल रंग की और अच्छी रूप-रेखा की औरत दिखाई देती हो।’
‘नसीम एक अंग्रेज औरत को हिन्दुस्तानी में बात करता देख विस्मय से बोली, ‘मेरा घर वाला कहता था कि आप एक अंग्रेज औरत हैं। मैं कहती थी कि किस तरह बात कर सकूँगी तो वह कहने लगा कि आप टूटी-फूटी हिन्दुस्तानी बोल सकती हैं। मगर आप तो हमारी बोली बहुत अच्छी तरह बोलती हैं।’
‘हां! मेरी माँ एक अंग्रेज औरत है, मगर मेरे पिता एक पाकिस्तानी हैं। मैं जब से पैदा हुई हूं पहली बार ही इधर आई हूं। मेरे पिता आज से सात साल पहले विलायत गये थे और मुझे पाकिस्तान आने का निमन्त्रण दे आये थे। तब से ही मैंने यहां की बोली सीखनी शुरू कर दी थी। अब मैं उर्दू में बहुत अच्छी तरह से बातचीत कर सकती हूं।’
‘मगर,’ नसीम ने बताया, ‘यह यहां की बोली नहीं है यह तो मेरे मायके की भाषा है।’
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