उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘यह सम्भव तो है।’’
‘‘और उससे भी आप यही कहते रहे होंगे कि उससे आपका जन्म-जन्मातार का सम्बन्ध बन चुका है।’’
‘‘अवश्य! और मैं कल के तुम्हारे व्यवहार से यह समझ गया हूँ कि तुम ही मेरे पूर्व और उससे भी पूर्व के जन्मों की साथिन हो।’’
‘‘ओह! बहुत पुराना रिश्ता निकाला है मुझसे।’’
‘‘देखो डीयर! हमारे एक विद्वान ने यह कहा है कि संसार में बहुत-सी ऐसी वस्तुएं और घटनाएं हैं जो स्थान के विचार से, काल के विचार से अथवा हमारी सामर्थ्य के विचार से हमारी इन्द्रियों से नहीं जानी जा सकतीं। उनको जानने का भी एक उपाय है। उस उपाय को ‘इनफरेंस बेस्ड ऑन विज़िबल फैक्ट्स।’ (प्रत्यक्ष के आधार पर आधारित अनुमान) कहते हैं। उसी से मैं यह जान गया हूं कि तुम मेरी जन्म जन्मान्तर की पत्नी रही हो।’’
इस पर नज़ीर ठहाका मार कर हंस पड़ी। दोनों अपने फ्लैट पर पहुंच ड्राइंग रूम में सोने से पहले एक-एक प्याला ओवल्टीन का ले रहे थे।
नज़ीर को हंसते देख तेजकृष्ण उसके मुख पर देखने लगा था। नज़ीर की आंखों में शरारत के लक्षण दिखायी देने लगे थे। तेज इसका अभिप्राय समझता था। इस कारण उसने कहा, ‘‘मैं अपने इस अनुमान पर विश्वास रखता हूं। क्योंकि यह वर्तमान की घटना पर आधारित है। मैं विश्वास दिलाता हूं कि मुझे तुम्हें और अधिक विश्वास दिलाने की आवश्यकता नहीं।’’
‘‘अजी, यह बात नहीं। मैं तो आपके व्यवहार से अपने पूर्व जन्म में झांकने की बात पर विचार कर रही थी।’’
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