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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘वहां से टेलीफोन आया है और हमें आठ बजे वहां पहुंचना है।’’

‘‘तो उनको विदित है कि आप इस समय जाग गए होते हैं।’’

‘‘हां! वहां भी पुरुष काम करते प्रतीत होते हैं। यदि कोई स्त्री होती तो रात को ग्यारह बजे टेलीफोन करती।’’

‘‘परन्तु मुझे किसलिए बुलाया है?’’

‘‘हाई कमिश्नर साहब ने कल कहा था कि वह तुमको चाय पर निमन्त्रण देना चाहते हैं। मैं समझता हूं कि उसी इच्छा का यह परिणाम है।’’

‘‘परन्तु क्यों? मैं समझ नहीं सकी।’’

‘‘अवश्य किसी ने उनको बताया होगा कि तुम विश्व की एक अनुपम सुन्दरी हो।’’

‘‘रहने दीजिये। आपने कुछ झूठ-सत्य मेरे विषय में उनको बताया होगा।’’

‘‘मैं सौगन्धपूर्वक कहता हूं कि मैंने तुम्हारी प्रशंसा किसी के सम्मुख नहीं की। यदि उनको तुम्हारे विषय में कुछ विदित होगा तो वह लन्दन से ही हुआ होगा। वह वायरलैस से लन्दन के साथ सम्बन्धित हैं।’’

नज़ीर लपक कर पलंग से उठी और बाथरूम में चली गयी।

दोनों साढ़े आठ बजे यू० के० के हाई कमिश्नर के ऑफिस में जा पहुंचे। सूचना भेजते ही उनको मिस्टर मिचल ने भीतर बुला लिया।

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