उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
वहां मिसेज मिचल और मिस्टर मिचल तथा उनके साथ उनकी एक चार वर्ष की लड़की भी उपस्थित थी।
नज़ीर समझ गयी कि यह भेंट निजी सम्बन्ध बनाने के लिए है। नज़ीर के साथ हाथ मिलाते हुए मिसेज मिचल ने कहा, ‘‘मिसेज बागड़िया! कल रात लन्दन से जब आपकी माँ का परिचय मिला तो मैंने इरीन की लड़की से मिलने की इच्छा मिस्टर मिचल से प्रकट की और इन्होंने इस समय ही तुम्हें यहां बुला लिया है।
‘‘जब तुम अपनी माँ को पत्र लिखोगी और उसको ‘मिल्ली’ कह कर मेरा परिचय दोगी तो वह समझ जायेगी।’’
इससे नज़ीर के मन से सब प्रकार के संशयों का वह किस कारण बुलायी गयी है निवारण हो गया।
मिस्टर मिचल ने उसके पाकिस्तान के अनुभवों के विषय में पूछना आरम्भ कर दिया।
नज़ीर ने बताया, ‘मैं वहां का इतिहास लिखने गयी थी और मैं समझती हूं कि वहां से बहुत ही ज्ञानवर्धक ‘मैटीरियल’ लेकर आयी हूं। मेरी पुस्तक की पाण्डुलिपि लन्दन में माँ के पास रखी है। जब मैं वहां जाऊंगी तो उसको ‘ऐडिट’ कर प्रकाशित करवाने का यत्न करूंगी।’’
‘‘और तुमको वहां से क्या सामग्री मिल सकी है?’’
‘‘मैंने वहां से प्रमुख पत्रों की फाइलें देखी हैं। बहुत से सरकारी ‘डाक्युमैन्ट’ देखे हैं और मैं समझती हूं कि इतिहास के विद्यार्थियों के लिए बहुत ही रुचिकर सामग्री एकत्रित कर ली है।’’
डेढ़ घण्टा भर नज़ीर और तेज वहां रहे। खाना-पीना भी हुआ और तेज का मिसेज मिचल से और मिस्टर मिचल का नज़ीर से वार्त्तालाप होता रहा।
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