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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


तेज ने वहां से चलने से पूर्व हाई कमिश्नर को अपना दूसरा बुलेटीन दिया। हाई कमिश्नर तेज को लेकर पृथक् कमरे में चला गया और नज़ीर मिसेज मिल्ली मिचल के समीप बैठी बात-चीत करती रही। पहले दिन की भांति हा कमिश्नर ने रिपोर्ट पढ़ी और उस पर कई प्रश्न किए। तेजकृष्ण के उत्तरों से हाई कमिश्नर ने उसी के बुलेटीन पर नोट्स लिए और फिर बुलेटिन को मेज के दराज में रख लिया।

उस दिन तेज हाई कमिश्नर के कार्यालय से ही उसने काम पर चला गया। नज़ीर वहां से अपने फ्लैट पर चली गयी। तेजकृष्ण जब मध्याह्नोत्तर चार बजे के लगभग फ्लैट पर लौटा तो एक प्रौढ़ावस्था का, नोकदार दाढ़ी रखे हुए, व्यक्ति से बाहर निकलते मिला। तेजकृष्ण उसे निकलते देख तुरन्त समझ गया कि वह पाकिस्तान हाई कमिश्नर के कार्यालय का वही आदमी है जिसके विषय में नज़ीर ने पहले दिन बताया था। यह उसे देख मुस्कराकर एक ओर खड़ा हो मार्ग देने लगा।

वह व्यक्ति भी खड़ा हो गया और ध्यान से तेजकृष्ण की ओर देख कर बोला, ‘‘यदि मैं गलती नहीं करता तो आप ही मिस्टर तेजकृष्ण हैं।’’

‘‘जी!’’ तेजकृष्ण ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘मैं तो नज़ीर से आज कहने ही वाला था कि आपको कल चाय पर आमन्त्रित करे, परन्तु आप तो स्वयं ही आ गए। आइए, चाय का समय तो हो गया है।’’

यह मिस्टर अजीब अहमद था। वह वापस तेज के साथ अन्दर को चल पड़ा। दोनों जब भीतर पहुंचे तो अजीज ने कहा, ‘‘मैं तो स्वयं ही आपके साथ लंच लने आया था परन्तु आप घर पर नहीं थे। नज़ीर बेटी ने बताया कि आप तीन बजे तक आने वाले है। इस कारण लंच लेकर आपकी प्रतीक्षा में यहां बैठा था। अब यह समझ कि फिर किसी दिन आऊंगा, चल पड़ा था।’’

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