उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
नज़ीर कमरे के बाहर अपने पति के बात करने का शब्द सुन द्वार खोल वहां आ गयी और दोनों को ड्राइंग रूम में ले गयी।
तेजकृष्ण ने अपनी सफाई दे दी। उसने कहा, ‘‘बात यह है कि मुझे मेरे समाचार पत्र ने बहुत भारी खर्च करते हुए भेजा है और मैं वह खर्चा न्याय संगत करने का यत्न कर रहा हूं। इसलिए यहां से सूचनाएं एकत्रित कर रहा हूं।’’
‘‘किस विषय में सूचना एकत्रित कर रहे हैं?’’ अजीज ने पूछ लिया।
‘‘हमारे समाचार-पत्र वालों का यह विचार है कि भारत और चीन में युद्ध आवश्यंभावी है। इस कारण वे इस विषय में नवीनतम समाचार प्राप्त करना चाहते हैं।’’
‘‘मैं भी उसी विषय में कुछ आपसे बातचीत करने आया हूं। यदि आप अपनी जानकारी हमको बतायें तो हम आपको बहुत कुछ सामग्री इस दिशा में दे सकते हैं।’’
‘‘वैसे तो मैं अपने कार्य के सम्बन्ध में पाकिस्तानी दूतावास में भी आने वाला था और यदि आपसे इस विषय में कुछ सूचना मिले तो मैं अति अनुगृहीत रहूंगा।’’
‘‘वह तो ले और दे की बात होगी। आप अपनी सूचनायें हमें दें तो हम आपको भी कुछ तो नवीन समाचार देंगे ही।’’
‘‘देखिये अजीज साहब! मेरी पूर्ण जानकारी मेरे समाचार पत्र में जानेवाली है। इस कारण उसमें कुछ भी चोरी नहीं। आप उसे अपनी सरकारी जानकारी के लिये प्रयोग कर सकेंगे, परन्तु समाचार-पत्रों मंा तो तब ही दे सकेंगे जब पहले हमारे पत्र में छप जाएगी।’’
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