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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘वह यह कि चीन इस देश के कम्युनिस्टों पर इतना भरोसा कर रहा है कि ज्यों ही चीन आक्रमण कर भारत के मैदानों में आ गया तो देश के सब मजदूर स्वयमेव हड़ताल कर देंगे और भारत की सरकार ठप्प हो जाएगी। इससे उनको अपने युद्ध के उद्देश्य को पूरा करने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होगी।’’

‘‘और उनका इस युद्ध में क्या उद्देश्य है? भारत को तिब्बत की भांति अपना एक सूब बनाना नहीं है क्या?’’

तेज ने एक क्षण तक विचार किया और कहा, ‘‘यह नहीं! ऐसा वह कर भी नहीं सकेंगे। इसे न तो रूस पसन्द करेगा और न ही यहां की जनता।

‘‘इस पर भी चीन यह आशा करता है कि भारत में कम्युनिस्ट राज्य स्थापित हो जाएगा, जो बहुत सीमा तक चीन पर निर्भर करेगा।’’

‘‘तब तो!’’ अजीज ने कहा, ‘‘हम समझते हैं कि यह बिना आक्रमण के भी यहां हो रहा है। जबसे यहां के ‘डिफेंस मिनिस्टर’ एक विख्यात कम्युनिस्ट बने हैं, तब से यहां कम्युनिस्ट राज्य स्थापित होना निश्चत हो गया है।’’

‘‘हां! ऐसा अन्य लोग भी समझ रहे है। परन्तु चीन का इसके अतिरिक्त एक उद्देश्य है। वह असम और पूर्वी पाकिस्तान पर अपना अधिकार जमा अपनी सेनायें बंगाल की खाड़ी में ले आना चाहता है।’’

‘‘परन्तु...!’’ अजीज कुछ कहता-कहता रुक गया।

तेजकृष्ण हंस पड़ा। हंसते हुए कहने लगा, ‘‘मैं जानता हूं कि आप क्या कहना चाहते है। आपका यह मतलब है कि चीन ने आपको विश्वास दिलाया है कि वह भारत का बहुत-सा भाग पाकिस्तान को अधिकार करने की स्वीकृति दे देगा। मैं नहीं जानता कि चीन का आपकी सरकार से क्या समझौता हुआ है। मुझे यह बात कुछ पाकिस्तानी सैनिकों से पता चली थी। यह गलत भी हो सकती है, परन्तु उनका खयाल था कि पाकिस्तान को पश्चिमी पंजाब और उत्तर-प्रदेश के कुछ क्षेत्र पर अधिकार करने देगा और उसके प्रतिकार में पूर्वी पाकिस्तान अपने अधिकार में कर लेगा।’’

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