उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘मेरे सामने हो तो मैं पहचान लूंगा।’
‘‘उसके सामने कई पुलिस वाले खड़े किये गये, परन्तु लड़के ने कह दिया, ‘‘इनमें से कोई नहीं है।’’
‘‘यदि तुम्हें पैंशन देकर पाकिस्तान से बाहर कहीं रहने के लिए भेज दिया जाये तो चले जाओगे?’’
‘नहीं, मैं पाकिस्तान में रहता हुआ इसकी बहबूदी और खुशहाली के लिए अपनी खिदमत देना चाहता हूं। मैं फौज में भरती होना चाहूंगा।’
‘तुम किसके खिलाफ लड़ना चाहते हो?’
‘यह पाकिस्तान सरकार बतायेगी। मैं तो एक वफादार सिपाही के रूप में काम करना चाहता हूं।’
‘‘इस लड़के के बयान हत्या की जांच के लिए नियुक्त कमेटी की फाइल में नहीं थे। वैसे तो रिपोर्ट खुफिया रखी गयी थी। मगर उस खुफिया रिपोर्ट में भी उसके बयान मैं नहीं देख सकी। यह रिपोर्ट अजीज साहब की सहायता से मुझे देखने को मिली थी और जब उसमें दिलावर खां के बयान नहीं मिले तो मैं इस लड़के से ऐबटाबाद मिलने गयी थी और दिलावर खां ने पूर्वाक्त बयान मुझे बताये थे।
‘‘मैंने उसमें पूछा था, ‘तुमने गोली चलती देखी थी?’’
‘‘उसका कहना था, ‘नहीं! आवाज सुनी थी और पीछे बाप की लाश ले जायी जाती देखी तो मैं होटल में जाने के स्थान ऐबटाबाद को चला आया था।’’
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