उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
|
6 पाठकों को प्रिय 203 पाठक हैं |
जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
अब तेजकृष्ण ने दिया ‘‘समाचार तो हम बना लेते हैं। हम तो पत्थर और पेड़ों से समाचार की कल्पना कर लेते हैं। मैं कुमारी मैत्रेयी जी के इस कथन से आज ‘लन्दन टाइम्स’ में एक समाचार भेज रहा हूं। आशा करता हूं कि कल के पत्र में वहां प्रकाशित हो जायेगा।’’
इस पर चर्चा आरम्भ करने वाले मिस्टर युसुफअली बोल उठे, ‘‘समाचार के लिए ‘मैटर’ तो मुझे भी मिला है, परन्तु यदि श्रीमती मैत्रेयी एक-दो प्रश्नों का उत्तर देना पसन्द करें तो मैं इसे ‘फर्स्टक्लास न्यूज’ का रूप दे सकूंगा।’’
‘‘आप पूछिये।’’ मैत्रेयी ने कह दिया, ‘‘यदि कुछ उत्तर देने के योग्य हुआ तो अवश्य उत्तर दूंगी।’’
मिस्टर युसुफअली ने जेब से कलम, कागज़ निकाल नोट करना आरम्भ कर दिया।
उसने पूछा, ‘‘आपने संस्कृत में एम० ए० किस वर्ष किया था?’’
‘‘सन् १९५७ में।’’ मैत्रेयी उत्तर दे रही थी।
‘‘आप ऑक्सफोर्ड में कब से काम कर रही हैं?’’
‘‘मैंने वहां कार्य सन् १९५८ मई मास से आरम्भ किया था।’’
‘‘वहां किन प्रोफेसर साहब की अध्यक्षता में ‘रिसर्च’ का कार्य कर रही हैं?’’
‘‘प्रोफेसर विलियम साइमन पी० एच० डी०, डी० लिट्० वाइस प्रेज़िडैण्ट ऑक्सफोर्ड सोसायटी ऑफ इण्डोलोजिस्ट्स।’’
‘‘आप भारत में कब लौट कर आयी हैं?’’
|