उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘मेरी माताजी बहुत बीमार थीं। उनको मिलने आयी थी। मुझे आये आज चौदह दिन हुए हैं। चार-पाँच दिन बाद मैं ऑक्सफोर्ड लौट जाने वाली हूं।’’
‘‘आपका श्री तेजकृष्णजी से क्या सम्बन्ध है?’’
‘‘हम घटनावश मिले हैं और फिर ‘फ्रेण्ड्स’ हो गये हैं। इनकी माताजी बहुत ही नेक विचारों की स्त्री हैं और वह मुझसे अपनी लड़की समान प्यार करती हैं।’’
तेजकृष्ण ने कह दिया, ‘‘मैं समझता हूं कि इससे तो पाठकों की रुचि कम हो सकती है।’’
‘‘दोस्त! वह पाकिस्तान है। वहां के लोगों की रुचि को मैं जानता हूं और इस खुश्क ‘डिस्कशन’ को रंग देने के लिए ये दो-चार बातें मददगार हो जायेंगी।’’
सब हंसने लगे। युसुफ ने आगे कहा, ‘‘अभी एक-दो प्रश्न और हैं। आप कभी इस्लाम के विषय में भी ‘स्टडी’ करती हैं क्या?’’
‘‘मैंने कुरान का अग्रेंज़ी अनुवाद पढ़ा है और कभी वेद तथा कुरान में समानता और असमानता पर लिखने का विचार रखती हूं।’’
‘‘बहुत खूब। अभी तक कुछ समता दिखायी दी है आपको?’’
‘‘समता भी दिखायी दी है और असमता भी। ग्रन्थों को पढ़ने से तो समता अधिक दिखायी दी है, मगर दोनों कम्युनिटीस को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि असमानता अधिक है। यह कम्युनिटीस के समझने में अन्तर के कारण है।
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