उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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मैत्रेयी के विस्मय का ठिकाना नहीं रहा जब उसने देखा कि उसके विषय में समाचार-पत्रों में प्रकाशित हो गया। ‘लन्दन टाइम्स’, ‘डान’ करांची और दिल्ली तथा मद्रास के समाचार-पत्रों में उसके विषय में समाचार समान रूपेण छपा था।
दिल्ली के एक दैनिक पत्र में यह प्रकाशित हुआ थाः–
‘‘आजकल कुमारी मैत्रेयी अपनी माँ के निधन पर दिल्ली आई हुई हैं। कुमारी मैत्रेयी पंजाब की एक प्रतिभाशाली छात्रा हैं जो भारत सरकार की छात्र-वृत्ति प्राप्त कर आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में इण्डोलोजी के एक विषय पर ‘रिसर्च’ कर रही हैं।
‘‘उनकी माँ को ‘किडनी’ का रोग था। उसका देहान्त हो गया है। मैत्रेयी ने अपने शोध-कार्य के विषय में वर्णन करते हुए कहा कि हिन्दु-मुसलमानों के समन्वय करने के लिए बुद्धि का ठीक प्रयोग करने की आवश्यकता है। बुद्धि को ठीक करने का एक सहज नुस्खा भी आपने बताया है कि क्रोध (ऐंगर) और इच्छाओं से पैदा वाले व्यवहार पर नियन्त्रण किया जाए।’’
मैत्रेयी समझ गई कि यह समाचर तेजकृष्ण की चाय के प्रतिकार ने प्रकाशित करवाया गया है।
मैत्रेयी स्नानादि से निवृत्त हो प्रातः के अल्पाहर की प्रतीक्षा में ड्राइंग रूम में बैठी थी कि तेजकृष्ण दिल्ली का दैनिक ‘स्टेट्समैन’ लेकर आ गया।
उसने कहा, ‘‘देखिये मैत्रेयी जी! आपके विषय में समाचार छप गया है।’’
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