उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘क्या लिखा है?’’
तेजकृष्ण ने समाचार निकाल कर मैत्रेयी को पढ़ने के लिए समाचार-पत्र दे दिया। मैत्रेयी ने पढ़ा और कहा, ‘‘जो कुछ इसके सम्वाददाता ने समझा है, वह दे दिया है। ‘थीसिज़’ के विषय में न तो कल बैठे लोगों में कोई समझता था और न ही इसमें एक शब्द भी उस विषय में लिखा है।’’
‘‘बात यह है कि हम जर्नलिस्ट और फिर समाचार-पत्रों के मालिक वह समाचार प्रकाशित करने में रुचि रखते हैं जिसमें जनता रुचि रखती हो। आपके ‘रिसर्च’ के विषय में न तो लोगों को रुचि है और न ही हमें इसकी समझ है।’’
‘‘इस पर भी मैं आपका धन्यवाद करती हूं। यह जो कुछ भी प्रकाशित हुआ है, आपके कारण हुआ है।’’
‘‘जब आप अपना वक्तव्य दे अपने कमरे में चली गई थीं, वहां बैठे प्रायः सब यह समझ रहे थे कि आप में और मुझ में घनिष्ठ सम्बन्ध बनने वाले हैं।’’
‘‘मैंने तो ऐसी कोई बात नहीं कही।’’
‘‘मैं भी उनको यह कहता रहा था कि अभी तक ऐसी कोई बात नहीं। पिछले चौदह-पन्द्रह दिन में हमने इस विषय पर कभी बात नहीं की। इस पर वह पाकिस्तानी पत्र-प्रतिनिधि कहने लगा था, मिस्टर तेज! तब तो तुम बहुत बड़े बुद्धू हो।’’
‘‘यह उसकी ‘रीडिंग’ आपके विषय में सर्वथा निराधार और गलत है। आपको मैं बुद्ध नहीं मानती।’’
‘‘यही तो बात है। जब कोई लड़की किसी लड़के के विषय में ऐसे विचार रखे तो यह समझा जाता है कि दोनों में मधुर सम्बन्ध बन रहे है।’’
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