उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
तेजकृष्ण को इंग्लैंड में रहते हुए बीस वर्ष होने जा रहे थे और इतने काल में बीसियों ही लड़कियों ने उससे विवाह के प्रस्ताव किये थे और वह उनके प्रस्तावों का उत्तर भी नहीं दे सका था। एक लड़की तो उसके मौन रहने का यह अर्थ समझी थी कि उसने उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है और वह उसके पिता के पास जा पहुंची थी और उनसे विवाह के विषय में आशीर्वाद माँगने लगी थी।
पिता के पूछने पर जब तेज ने अपने मन की अवस्था वर्णन की तो उन्होंने कहा था, ‘‘तेज! तुम बहुत ही ‘टिमिड’ हो। जो लड़का किसी न पसन्द लड़की को इनकार नहीं कर सकता, वह दुर्बल मन माना जाता है।’’
‘‘परन्तु वह आज स्वयं प्रस्ताव कर रहा था और उस अंग्रेज़ लड़की के विपरीत इसने उसे कहा था कि अपनी माताजी से जाकर कहे। इससे इस लड़की के अपने मन पर प्रभाव का वह अनुमान लगा रहा था।
तेज ने बेक्रफास्ट पर माँ से कह दिया, ‘‘माँ! मुझे आज कुमारी मैत्रेयी ने यह सम्मति दी है कि मैं तुमसे कहूं कि तुम हमारे विवाह के विषय में हमें आशीर्वाद दें।’’
‘‘सत्य?’’ यशोदा ने मुस्कराते हुए पूछा।
‘‘माँ! मैं तुमसे कभी झूठी बात नहीं करता।’’
मैत्रेयी अपनी प्लेट में पड़े ‘पौरेज’ को चम्मच से ठण्डा करने का बहाना करते हुए हिला रही थी।
यशोदा ने पूछ लिया, ‘‘बेटी मैत्रेयी! तेज सत्य कहता है?’’
मैत्रेयी ने सिर ऊपर उठाया और तेज़ की माता की ओर देखते हुए पूछ लिया, ‘‘तो यह कभी अपनी माँ के सम्मुख झूठ भी बोलते हैं?’’
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