उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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यशोदादेवी की सज्जनता और सहानुभूति के व्यवहार ने मैत्रेयी के मन में तेज और उसकी माता के लिए मान का भाव उत्पन्न किया था और वह समझ रही थी कि विवाह तो करना ही है। माँ के निधन के उपरान्त यह और भी अधिक आवश्यक और एक प्रकार की विवशता हो गई थी कि कहीं घर बनाकर रहना चाहिए। वह समझी कि यशोदा देवी का घर किसी प्रकार भी अनिच्छित नहीं हो सकता।
इस कारण वह तेजकृष्ण के प्रस्ताव करने की प्रतीक्षा कर रही थी। जब उसके विषय में दिल्ली के एक दैनिक में छपे समाचार को तेजकृष्ण ने उसे दिखाया तो पहले दिन मित्रों से हुए वार्तालाप को तेज ने विवाह की चर्चा करने के लिए सुना दिया। तब मैत्रेयी ने यह सुअवसर जान कह दिया कि माँ से आशीर्वाद प्राप्त कर लीजिए।
अल्पाहार लेते हुए बात पूर्ण रूप से निश्चय हो गई तो माँ ने टेलीफोन द्वारा कलकत्ता में ट्रंककाल कर दिया। वह टेलीफोन के कमरे में ट्रंककाल होने की प्रतीक्षा में बैठी थी। मैत्रेयी उठ ड्राइंग रूम में आ पुस्तक पढ़ने लगी।
उसे वहां बैठे अभी दो मिनट ही हुए थे कि तेज आया और मैत्रेयी के समीप सोफे पर बैठ बोला, ‘‘अब तो माँ से आशीर्वाद प्राप्त हो गया है।’’
‘‘हां! वह आपके इस निर्णय पर प्रसन्न प्रतीत होती हैं।’’
‘‘परन्तु मैं तो आपसे आज के ‘ऐंगजमैण्ट’ का अग्रिम ‘टोकन’ लेने आया हूँ।’’
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