उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
मैत्रेयी इस अग्रिम टोकन का अर्थ समझने के लिए तेजकृष्ण का मुख देखने लगी तो तेजकृष्ण ने कहा, ‘‘तो आप नहीं समझीं?’’
‘‘कुछ बतायें तो समझ में आये। माँ जीवित होतीं तो वह आपको एक अंगूठी दे देतीं।’’
‘‘वह तो मैं पहनता नहीं। आभूषण पहनना, मैं स्त्रियों का काम समझता हूं। मैं तो आपसे कुछ अग्रिम चाहता हूं।’’
‘‘क्या, बताइये?’’
‘‘यह बताने की वस्तु नहीं। यह तो...।’’ उसने एकाएक मैत्रेयी के अधरों को चूम कर उससे कसकर आलिंगन कर लिया।
मैत्रेयी को ध्यान आया कि तेजकृष्ण इंगलैंण्ड में पला जीव है। अतः यह समझ में आते ही उसने स्वेच्छा से स्वयं को उसकी भुजा-पाश में दे दिया।
एक, दो, फिर बार-बार चुम्बन होने लगा तो मैत्रेयी को समझ में आया कि वह अग्रिम सीमा से बढ़ रहा है। इस पर उसने कह दिया, ‘‘बस, अब छोड़ दीजिये। अग्रिम हो गया। पूरा लेन-देन तो विवाह के उपरान्त होना चाहिये।’’
तेज को भी समझ में आ गया कि माँ बगल के कमरे में बैठी है। कहीं इधर सीमा से अधिक अग्रिम माँगा तो भारी युद्ध हो जायेगा। उसने मैत्रेयी को छोड़ दिया और तनिर दूर हट कर बैठते हुए कहा, ‘‘अत्यन्त धन्यवाद है। अब मैं बाजार जा रहा हूं। मध्याह्न भोजन के समय आऊंगा और आपकी इस कृपा के लिये एक टोकन मैं भी अपनी ओर से देना चाहूंगा।’’
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