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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


इतना कह तेज कमरे से निकल गया। मैत्रेयी उस आलिंगन के उपरान्त अपने को शान्त ही कर रही थी कि यशोदा कमरे में आई और बताने लगी, ‘‘शकुन्तला से बात हो गई है। वह अपने पति के साथ भाई के विवाह पर इंगलैंण्ड जाने के लिए तैयार हो कल यहां आ जायेगी।

‘‘उनके पास पासपोर्ट है। मैं परसों के लिये पांच सीटें हवाई जहाज से बुक करा रही हूं। सब परसों यहां से चलेंगे।’’

इसमें उत्तर देने को कुछ नहीं था। यशोदा ने पूछ लिया, ‘‘तेज कहां है?’’

‘‘बाजार गये हैं।’’

‘‘कब तक आने को कह गया है?’’

‘‘कहते थे कि मध्याह्न भोजन के समय आयेंगे।’’

‘‘अच्छी बात है। मैं पता करती हूं कि पांचों सीटें किस हवाई जहाज से मिल सकती है।’’

यशोदा पुनः टेलीफोन करने चली गयी।

मध्याह्न के समय जब तेज आया तो माँ ने बताया, मैंने जापान एयर लाइन्स के जहाज में परसों के लिये पांच सीटें रिजर्व करवा ली है। मैं, तुम, मैत्रेयी, शकुन्तला और उसका घर वाला सब तुम्हारे विवाह के अवसर पर उपस्थित होने के लिये लन्दन चलेंगे। वहां विवाह होगा। फिर तुम हनीमून के लिये जहां निश्चय करो, जा सकते हो।

‘‘इसके उपरान्त, मेरी इच्छा है कि तुम एक स्थान पर बैठ कर कोई काम करो। यह ‘ग्लोब ट्रॉटर’ का काम मुझे पसन्द नहीं।’’

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