उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘माँ! काम तो मैत्रेयी की पसन्द का करूंगा। रहने का स्थान भी उसके अनुसार ही निश्चय करूंगा।’’
माँ इस विचार पर प्रसन्न थी। भोजन के समय जब मैत्रेयी भोजन करने आयी तो वह तेज की माता के साथ बैठ गयी। तेज ने माँ को एक हीरे के जड़ित अंगूठी दिखाई और कहा, ‘‘माँ! यह इसे पहना दो। यह आज सगाई के भेंट स्वरूप है।’’
माँ ने अंगूठी देखी और मैत्रेयी की अंगुली पर चढ़ा दी। वह अंगुली पर पूरी आयी तो माँ ने पूछा, ‘‘नाप कैसे लिया था?’’
‘‘अनुमान से ले आया था। जौहरी से बदलने का वचन ले आया था। परन्तु ईश्वर का धन्यवाद है कि मेरा अनुमान ठीक ही निकला है।’’
मैत्रेयी ने अँगूठी पहने अपने हाथ को देखा और उससे हाथ की शोभा बढ़ गयी देख कृतज्ञता की दृष्टि से तेज की ओर देखने लगी। तेज हंस पड़ा। हंसते हुए बोला, ‘‘धन्यवाद है।’’
‘‘धन्यवाद तो मुझे करना चाहिये। कितने की मोल लाये हैं?’’
‘‘यह नहीं बताऊंगा। जब पसन्द है तो मूल्य प्राप्त हो गया है।’’
अगले दिन शकुन्तला अपने पति मोहनचन्द सोमानी के साथ मध्याह्नोत्तर तीन बजे हवाई पत्तन पर पहुंच गई। यशोदा, पुत्र और होने वाली बहू के साथ उनके स्वागत के लिये पत्तन पर पहुंची हुई थी।
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