उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
शकुन्तला ने अपनी होने वाली भाभी को देखा तो गद्गद प्रसन्न हो गयी। हवाई पत्तन से निकलते हुए ही उसने माँ से पूछ लिया, ‘‘तो यह है हमारी होने वाली भाभी?’’
‘‘क्यों?’’ तेज ने पूछ लिया, ‘‘पसन्द नहीं, शकुन्तला?’
‘‘पसन्द तो एक ही नजर में कर लिया है। परन्तु कहां से ढूंढ़ लाये हो इसे भैया?’’
‘‘कहीं से भी हो। अब यह तुम्हारी भाभी है।’’
इस समय सब मोटर के पास आ पहुँचे। मोहनचन्द सोमानी तेज के पास अगली सीट पर बैठ गया और तीनों स्त्रियां पीछे की सीट पर बैंठी तो फिर बातें होने लगीं।
‘‘माँ! यह अपनी जाति-बिरादरी की प्रतीत नहीं होतीं।’’ शकुन्तला ने कह दिया।
‘‘हां; यह पंजाब के एक विद्वान ब्राह्मण की लड़की है। इस समय ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में शोध-कार्य कर रही है।’’
‘‘बहुत खूब। तो भैया अब ब्राह्मणों के बाप हो जायेंगे। भाभी अपने बच्चों को ब्राह्माणोचित शिक्षा देना चाहेगी।’’
‘‘यह बात तो मैंने विचार ही नहीं की थी। क्यों मैत्रेयी?’’ यशोदा ने पूछ लिया, ‘‘क्यों बनाओगी अपने बच्चों को?’’
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