उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
एक प्रकार से उसे जीवन का बीमा हो रहा प्रतीत हुआ था। इससे वह अपने भविष्य के लिये आश्वस्त अनुभव करने लगी थी।
सब लोग घर पहुंचे तो शकुन्तला मैत्रेयी के कमरे में जा उसका इतिहास जानने लगी। मैत्रेयी ने अपने बाल्यकाल से उस समय तक की सब स्मरण बातें बता दीं। दोनों एक घण्टा भर वार्त्तालाप के बाद निकलीं तो शकुन्तला मैत्रेयी से सर्वथा सन्तुष्ट थी। वह भाभी की बांह में बांह डाले ही उसे कमरे से बाहर चाय के लिये ले आयी।
चाय के तुरन्त उपरान्त यशोदा ने अपना इंग्लैण्ड जाने के लिए सूटकेस तैयार कर लिया।
तेजकृष्ण का तो सूटकेस तैयार ही रहता था। मैत्रेयी को अपना सामान तैयार करना पड़ा था। माँ की मृत्यु पर उसको कुछ सामान मिला था। उसमें से उसने कुछ आभूषण, जो माँ ने उसके लिए रखे हुए थे, अपने सूटकेस में रख लिए और शेष सामान उसने यशोदा की कोठी में ही ताला लगा कर रख दिया।
अगले दिन उनको मध्याह्न के दो बजे हवाई जहाज में जाना था। वे पत्तन पर एक बजे ही पहुंच गये थे।
यह घटनावश ही था कि तेजकृष्ण को सीट परिवार के अन्य सदस्यों से पृथक् मिली। जापानी हवाई जहाज में सीटें दो-दो की पंक्तियों में भीं। मोहनचन्द तो अपनी पत्नी शकुन्तला के साथ बैठ गया। यशोदा मैत्रेयी के साथ बैठ गयी। तेजकृष्ण की सीट पृथक् थी और उसके साथ एक मुसलमान स्त्री बुर्के में आ बैठी। तेजकृष्ण अपने साथ की सीट पर एक बुर्के वाली स्त्री को आकर बैठते देख परेशानी अनुभव करता हुआ विस्मय में अपनी साथिन की ओर देखने लगा।
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