उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘चौदहवीं का चांद। मैं कुछ और समझा था।’’
‘‘क्या समझे थे?’’ लड़की शुद्ध अंग्रेंज़ी में बात कर रही थी।
‘‘यही कि कोई जईफ (बड़ी आयु की) लेडी है। जो पुराने जमाने के तरीके से अपनी सूरत-शक्ल दिखाने में गुनाह मानती है।’’ तेजकृष्ण को भी अंग्रेंज़ी में ही बात करना सुगम प्रतीत होने लगा।
लड़की हंसी और अब अपने बुर्के को समेटती हुई बोली, ‘‘खुदा का शुक्र है कि एक भले आदमी का साथ मिला।’’
‘‘क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं और आप कहाँ तक जा रही हैं?’’
‘‘पहले अपना परिचय देना उचित नहीं क्या?’’
‘‘हाँ! मैं तेजकृष्ण हूं। लन्दन टाइम्स का नुमाइन्दा हूं। समाचार पत्र के काम से ही भारत, पाकिस्तान और चीन के दौरे पर आया हुआ था। अब वापस लन्दन जा रहा हूं।’’
‘‘तब तो आप बहुत ही लुभायमान व्यक्ति मालूम होते हैं।
‘‘मैं पाकिस्तान के एक आला अफसर की लड़की नज़ीर हूं। मेरी माँ लन्दन में है और मैं उससे मिलने जा रही हूं। रावलपिंडी से मैं दिल्ली अपने वालिद साहब के सेक्रेटरी के साथ आयी थी और यहां से आगे अकेली महसूस कर रही थी। मगर...।’’
तेजकृष्ण साथ बैठी लड़की की तुलना मैत्रेयी से कर रहा था। शारीरिक सौन्दर्य में तो नज़ीर सत्य ही बेनज़ीर थी। परन्तु इसके मानसिक और बौद्धिक गुणों के विषय में उसे सन्देह था कि वह मैत्रेयी के समान होगी अथवा नहीं।
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