उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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तेजकृष्ण को मैत्रेयी से विवाह का वचन देने पर पश्चात्ताप लगने लगा था। हवाई जहाज दिल्ली से बम्बई जाकर ठहरा। इतनी यात्रा में दो घण्टे लगे थे। इतने में ही तेजकृष्ण के विचारों में परिवर्तन होने लगा था।
बम्बई हवाई पत्तन पर हवाई जहाज को आधा घण्टा ठहरना था और सब यात्री उतर कर पत्तन के ‘सिटिंग रूम’ में आये थे। वहां तेजकृष्ण ने अपने हवाई जहाज के साथी मिस नज़ीर का परिचय अपने घर वालों से कराया।
परिचय कराते ही नज़ीर सबसे घुल मिल कर बातें करने लगी। तेजकृष्ण अपने जीजा मोहनचन्द से स्त्रियों से पृथक बैठ बात करने लगा। मोहनचन्द ने पूछ लिया, ‘‘यह लड़की कौन है?’’
‘‘एक पाकिस्तानी अफसर की लड़की है। अपनी माँ से मिलने इंगलैंड जा रही है।’’
‘‘यह बहुत ही चुलबुले स्वभाव की प्रतीत होती है।’’
‘‘दिल बहलाने के लिए बहुत अच्छा साथी है।’’
‘‘सावधान रहना चाहिये इन पाकिस्तानी औरतों से।’’
‘‘परन्तु जीजा जी! यह तो अभी नाबालिग लड़की मालूम होती है।’’
‘‘आप इसकी आयु क्या समझे हैं?’’
‘‘मुझे तो यह अठारह-उन्नीस वर्ष की उम्र की प्रतीत होती है।’’
‘‘पूछना। मैं समझता हूं कि यह युवती है और पूरे यौवन के झूलने में झूल रही है।’’
तेजकृष्ण ने बात बदल दी। उसने कहा, ‘‘एक बात से प्रसन्नता हो रही है कि मेरा पाकिस्तान में भी किसी से घनिष्ट सम्बन्ध बन रहा है।’’
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