उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘घनिष्ट? क्या घनिष्टता पैदा हो गयी है तुम्हारी उससे?’’
‘‘दो घन्टे के वार्त्तालाप में ही वह अपने दिल के जज़बात का इज़हार करने लगी है।’’
‘‘अपने बाप का नाम और ओहदा बताया है?’’
‘‘मैंने पूछा नहीं।’’
‘‘तो पता करना। साथ ही भारत के विषय में उसके विचार जानना। तुमने बताया है कि उसका पिता नहीं चाहता था कि भारत के रहने वालों की नज़र उसकी लड़की पर पड़े। यह उसकी दिमागी हालत का कुछ-कुछ परिचय देता है।’’
‘‘हाँ! बाप मुतास्सिब मुसलमान मालूम होता है। मगर वह तो बुर्का उतारने के लिए बेताब थी। ज्यों ही हवाई जहाज का दरवाजा बन्द हुआ कि उसने बुर्का उतार डाला।
‘‘देखिये, जीजा जी! मैं एक समाचार-पत्र का प्रतिनिधि हूं और मैं तो विरोधी विचारों के व्यक्ति से भी हेल-मेल रखने का स्वभाव रखता हूँ।’’
‘‘ठीक है। मगर मैं जो बात कह रहा हूं वह यह कि अपने विचार उसे मत बताना।’’
इस समय लाउड स्पीकर से घोषणा की गयी कि जाल फ्लाइट’ ३0२ तैयार है।
सब उठे तो नज़ीर तेजकृष्ण के साथ हो गयी।
हवाई जहाज में पहुँचते ही यात्रियों के लिए चाय का प्रबन्ध किया हुआ था। बम्बई ठहरने से पहले जहाज की ‘होस्टेस’ आकर चाय, काफी इत्यादि यात्रियों की रुचि नोट करके ले गयी थी। अब यात्री आकर बैठे थे तो उनके बैठने के स्थान के सामने ‘स्नैक्स’ लगे थे।
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