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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


मोहनचन्द ने अपनी पत्नी के पास बैठते ही पूछ लिया, ‘‘यह मुसलमान लड़की क्या बात कर रही थी। आप सब उसकी बातों पर हंस रहे थे।’’

‘‘पाकिस्तान की बातें बता रही थी। वहां लोगों के स्वभाव की बातें हो रही थीं।’’

‘‘क्या बात हो रही थी?’’

‘‘वह बता रही थी कि पाकिस्तान की बिना में ही इस्लाम का जज़बा है और इस्लामी हकूमत के लिए वहां इन्तजाम कर रखा है।’’

‘‘तो यह हंसने की बात थी?’’

‘‘जी नहीं! मगर हंसी तो उसकी इस बात पर आ रही थी कि औरतों ने वहां इस्लाम से बगावत कर रखी है। कोई ही ऐसी औरत होगी जो बाजार में चलते समय बुर्का पहनती हो। वहां औरतें गैर मुसलमानों से सम्बन्ध बनाने के लिए बेताब रहती हैं। कई बार तो औरतें इसके लिए आपस में लड़ पड़ती हैं।’’

‘‘यह क्यों?’’

शकुन्तला ने बताया नहीं। वह विचार कर रही थी कि जो कुछ नज़ीर ने कहा था वह वताये अथवा न। दोनों कॉफी ले रहे थे। एकाएक मोहनचन्द ने अपने मन की बात कह दी। उसने कहा, ‘‘मुझे यह औरत तेज पर डोले डाल रही प्रतीत होती है।’’

‘‘वह तो कह रही थी कि आप तेज से अधिक पुरुष प्रतीत होते हैं।’’

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