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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


इसने यशोदा को वार्त्तालाप का विषय बदलने पर विवश कर दिया।

मोहनचन्द के कथन से तेजकृष्ण नज़ीर के विषय में अधिक जानने के लिए उत्सुक हो गया था। अतः बम्बई से चलने पर जब तेज और नज़ीर अपने स्थान पर आये तो चाय के साथ खाने का सामान इनके सामने भी लगा था। नज़ीर ने उसे देखते ही खुदा का शुक्र किया और कहा, ‘‘मैं तो भूख से बेताब हो रही थी।’’

‘‘तो अब शुरू करिये।’’

‘‘यही तो कह रही हूं।’’

तेज ने बैठते ही पूछा, ‘‘आपके वालिद साहब पाकिस्तान में किस ओहदे पर हैं?’’

‘‘किस लिए पूछ रहे हैं?’’

‘‘अब आपसे वाकफीयत हुई है और यह जानने की ख्वाहिश पैदा हो गयी है कि आप जैसी अनुपम लड़की को बनाने वाला कौन है?’’

‘‘मुझे तो मेरी माँ ने बनाया है। मैं शरीर और रूप-रेखा में उसकी नकल ही हूं। वह इंगलैंड में लार्ड हैमिल्टन के परिवार की है। सीधी लाईन में तो नहीं, मगर उनके परिवार में से हैं।’’

‘‘क्या नाम है उनका?’’

‘‘इरीन हैमिल्टन! वह मेरे वालिद साहब के प्रेम में फंसी तो मैं पैदा हो गयी। सुना है कि जब मैं माँ के पेट में तीन-चार महीने की थी तब मेरी माँ को वालिद साहब ने शादी के लिए कहा था। उन्होंने कहा था कि हिन्दुस्तान में आकर शादी हो जाएगी। वह न तो हिन्दुस्तान आयी और न ही उनकी शादी हुई। इस पर भी वह अपने को उनकी बीवी मानती हैं। इससे यह जाहिर होता है कि माँ वालिद साहब के लिए ‘इन्टेंस लव’ महसूस करती थीं।

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