उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘अगर आप पसन्द करेंगे तो मैं आपका परिचय उनसे करा दूंगी और आप उनसे ही उनका परिचय जान सकेंगे। आप मेरी बाबत पूछिये।’’
‘‘मैं तो यह समझा था कि आप चौदह-पन्द्रह वर्ष की अभी बच्ची ही हैं। मगर आपने अभी बताया है कि जब आपका जन्म हुआ था तब अभी ‘सैकिण्ड वर्ल्ड वार’ आरम्भ नहीं हुई थी। इससे तो आप काफी बड़ी उम्र की मालूम होती हैं।’’
‘‘कितनी बड़ी आयु की मैं हो सकती हूँ?’’
‘‘कम से कम इक्कीस-बाईस साल की तो होंगी ही।’’
नज़ीर हंस पड़ी। हंसते हुए बोली, ‘‘मेरी पैदायश सन् १९३८ अक्टूबर की पाँच को सवेरे दस बजकर पन्द्रह मिनट की है। अभी कुछ दिन हुए मेरे पैदा होने की तारीख और वक्त पता किया गया था।’’
‘‘किस लिए?’’
‘‘मेरी ज़िन्दगी की बाबत माँ कुछ जानने के लिए फिक्रमन्द थीं। इसलिए उन्होंने वालिद को लिखा था और उन्होंने अपनी डायरी से देखकर बताया था। मैंने ही माँ को चिट्ठी में लिखा था। इससे मुझे यह तारीख और वक्त पता चल गया है।’’
‘‘देखिये नज़ीरजी! आपकी ज़िन्दगी दर हकीकत निहायत दिलचस्प मालूम हो रही है। इसी से मेरे मन में आपके वालिद साहब और माँ की बाबत जानने की ख्वाहिश पैदा हो रही थी।’’
‘‘यह ठीक है। आप में ख्वाहिश पैदा होनी ही चाहिए। मगर जिसकी बाबत जानना चाहते हैं वह तो आपकी बगल में बैठी है और जो माँ-बाप से जानने की बात है वह मैंने खुद ही बता दी है। बकाया तो मैं हूं। आप मेरी बाबत मुझसे पूछिये। उसके माँ-बाप की तलाश फिजूल है।’’
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