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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘यह तो ठीक है। पका हुआ और लज़ीज़ फल सामने प्लेट में रखा हो तो उसके पेड़ को ढूंढ़ने की कोशिश कुछ मायने नहीं रखती।’’

‘‘हां, अक्लमन्द फल को खाने की कोशिश करता है। उसके खेत और खेत के मालिक से तो उसका ताल्लुक रहता ही नहीं।

‘‘सिर्फ इतनी बात थी कि कभी-कभी बहुत ही खूबसूरत और देखने में पके हुए आम खाने पर तुरश निकल आते हैं। इसलिए उनकी जाति, कि वह बनारसी लंगड़ा है, मलीहाबादी दशहरी अथवा होशियारपुरी जंगली, यह जानने की जरूरत रहती है।’’

‘‘और जब पता न चल सके तो ‘रिस्क’ लेना ही पड़ता है।’’

‘‘मगर नज़ीरजी! यदि पता चल जाये तो दाम बढ़ जाता है।’’

‘‘मगर यहां तो बेदाम ही मिल सकता है। सिर्फ हाथ बढ़ा खाने की तकलीफ ही करनी होगी।’’

इतनी स्पष्टवादिता पर तेजकृष्ण ने नज़र भर कर साथ बैठी लड़की को देखा तो उसने मुस्कराते हुए प्रेम भरी दृष्टि से तेज की ओर देखा।

तेज अनुभव कर रहा था कि उसके तन-बदन में आग लग रही है। उसने हवा के लिए हवाई जहाज की दीवार से लगा बटन दबाया तो ठण्डी हवा उसके मुख पर लगने लगी। उसने कुछ देर चुप रह कर अपने मन के भावों पर नियन्त्रण करने का यत्न किया और वार्तालाप का विषय बदल दिया।

तेज ने पूछा, ‘‘मैं रावलपिण्डी में था तो आज़ाद कश्मीर में छापा मार फौफी दस्ते तैयार किये जा रहे थे। आपको इनकी बाबत कुछ पता है?’’

अगर पता हो भी तो मैं बता नहीं सकती। मैं अपने मुल्क के साथ गद्दारी नहीं कर सकती। हां, अगर आप कसम खाकर कहें कि खबर अखबारों में नहीं देंगे तो अपनी कुछ जानकारी बता सकती हूं।’’

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