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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘हो सकता है। इसीलिये मैंने कहा है कि मेरी खबर पब्लिक के लिए नहीं है। यह तो समझदार लोगों के गौर करने की बात है, वे इससे नतीजा निकाल सकते हैं।’’

‘‘मैं मुजफ्फराबाद भी गया था और वहाँ से दोनों कश्मीर के बीच जो ‘सीज़-फायर लाईन’ है वह भी देखने गया था। मैंने यह खबर अखबार में भेजी है कि राष्ट्रसंघ के सैनिक ‘वाच ऐण्ड वार्ड’ करते दिखायी देने के स्थान नाच घरों में देखे जाते हैं।’’

‘‘हां! यह तो है ही। आखिर वे लोग, जिनकी लड़ाई रोकने में दिलचस्पी नहीं है, खतरा क्यों मोल लेंगे? जिनकी दिलचस्पी है, वे ही कुछ करें तो करेंगे।’’

‘‘मगर पाकिस्तान की दिलचस्पी क्या है जो वह आज़ाद कश्मीर में बेहद रुपये फिजूल में फूँक रहा है?’’

‘‘पाकिस्तान इसे फिजूल नहीं समझता। वह पूरे कश्मीर को और उसके साथ जन्मू के इलाके को अपने मुल्क में मिलाना चाहता है। यह ख्वाहिश मजहबी इक्तसादी और सियासी बिना पर बनी है।

‘‘पाकिस्तान की जिन्दगी कश्मीर के साथ बावस्ता है। जब तक यह पाकिस्तान को मिल नहीं जाता तब तक पाकिस्तान सुख की सांस नहीं ले सकता।’’

‘‘मैं कुछ हिन्दुस्तानी हुक्मरानों से भी मिलकर आया हूं और वे कहते हैं कि भारत के हित आज़ाद कश्मीर और पख्तूनिस्तान में हैं। उनको ये भारत के कब्जे में होने चाहिएँ।’’

‘‘मगर दुनिया का कोई भी मुल्क भारत की इस राय से मुआफिक नहीं है। इसी वजह से भारत ने जब कश्मीर का मामला यू० एन० ओ० में चलाया तो भारत की बात किसी ने नहीं मानी। रूस ने अगर ‘वीटो’ न किया होता तो कोरिया वाला युद्ध यहां भी हो जाता। यहां यू० एन० ओ० पाकिस्तान की सहायता करता।’’

तेजकृष्ण समझ गया कि यह लड़की भूमण्डल की ‘डिप्लोमैसी’ को भली-भांति समझती है।

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