उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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काहिरा में जहाज हिन्दुस्तानी समय के अनुसार रात के तीन बजे पहुंचा। वहां यात्रियों के आराम के लिये सुविधा थी। इस कारण यात्री आराम करने चले गये। जहाज तीन घन्टे तक वहां ठहरा था। नज़ीर तेजकृष्ण के साथ यात्रा कर रही स्त्रियों के साथ आराम करने चली गयी और तेजकृष्ण अपने जीजा मोहनचन्द के पास चला गया।
तीन घण्टे में कुछ नींद लेने का अवसर नहीं था। कुछ आराम कुर्सियों और सोफा पर किया गया और फिर स्नानादि से छुट्टी पायी गयी। जब लोग तैयार हो रहे थे तो यह सूचना दी गयी कि प्लेन’ एक घण्टा देर से चलेगा।
इस समय यात्री लोग वहीं ‘स्टेंट हाउस’ में काफी, चाय इत्यादि लेने लगे। तेज के सब साथी भी एक मेज पर बैठे चाय और साथ टोस्ट इत्यादि लेने लगे थे। वहां पर बैठे और चाय लेते हुए मोहनचन्द ने तेजकृष्ण के विवाह की चर्चा चला दी। उसने शकुन्तला की माँ से पूछ लिया, ‘‘माताजी! विवाह के विषय में कुछ बात विचार की है अथवा नहीं?’’
‘‘क्या विचार कर सकती हूं? तेज के पिता जी को दिल्ली से केबल कर दिया था और वहां से कोई उत्तर नहीं आया।’’
‘‘क्या ‘केबल’ किया था?’’ मोहनचन्द ने पूछ लिया।
‘‘मैंने लिखा था कि तेजकृष्ण विवाह करने लन्दन आ रहा है और परिवार के अन्य सदस्य भी साथ हैं।’’
‘‘तो आपने लिखा नहीं कि कब आ रहे हैं?’’
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