उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
यशोदा मुस्कराती हुई मुख देखती रह गयी और उसे चुप देख शकुन्तला ने कह दिया, माँ! इसका अर्थ पिताजी यह भी समझ सकते हैं कि हम एक-दो महीने में वहां पहुंच रहे हैं।’’
‘‘नहीं शकुन्तला! यह ‘केबल ग्राम’ हवाई जहाज के टिकट लेने से पहले भेजा था, परन्तु एक अन्य ‘केबल ग्राम’ उसी रात भेजा है कि हम किस जहाज से वहां पहुंच रहे हैं। मेरा अभिप्राय था कि तुम्हारे पिताजी हमें ‘ऐयरोड्राम’ पर अपनी गाड़ी लेकर लेने आयें। इससे बात स्पष्ट हो जानी चाहिए।’’
‘‘तो आज लन्दन पहुंचने पर पता चल जायेगा कि हमारे आने का पिताजी को कैसा अनुभव हो रहा है।’’
मोहनचन्द ने तेज से पूछ लिया, ‘‘क्यों तेज! कल विवाह हो जाना चाहिए न?’’
‘‘यह तो हम वहाँ चलकर निश्चय करेंगे। कदाचित् मैत्रेयीजी पहले ऑक्सफोर्ड जाना चाहें। इनको अपने गाइड से भी तो मिलना होगा।’’
‘‘तो इस विषय पर आपने अभी बातचीत नहीं की?’’
‘‘समय ही कहां था। दिल्ली में तो हवाई पत्तन पर भाग दौड़ करता हुआ पहुंचा था। मार्ग में ऐसी बातें हो ही नहीं सकतीं।’’
‘‘क्यों, मैत्रयीजी?’’
‘‘वैसे तो मैं अपने गाइड से एक सप्ताह में लौटने के लिए कह कर आयी थी और मुझे बीस दिन लग रहे हैं। परन्तु बहुत कुछ माताजी की रुचि पर निर्भर करता है। जब यह अपने घर का द्वार खोलेंगी तभी तो उसमें प्रवेश पा सकूँगी।’’
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