उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
इस पर मोहनचन्द ने कह दिया, ‘‘मैं वहां एक सप्ताह से अधिक नहीं ठहर सकूंगा। कलकत्ता में काम बहुत दिन तक छोड़ा नहीं जा सकता। एक सप्ताह लन्दन में ठहरने का अभिप्राय है कि कलकत्ता से पन्द्रह दिन के लिए गैर हाजिर।’’
‘‘जीजाजी! इतनी देर नहीं लगनी चाहिए।’’
‘‘हां। देखो, आज तारीख है बीस सितम्बर और मैं जाते ही अठ्टाईस सितम्बर के लिए वापसी का प्रबन्ध करने वाला हूं।’’
‘‘मैं तो समझती हूं कि विवाह कल हो जाना चाहिए।’’ शकुन्तला का कहना था। ‘‘जिससे हमें एक-आध दिन स्विट्ज़रलैण्ड ठहरने का भी समय मिल जाए।’’
‘‘यह आज घर पहुंचते ही विचार करेंगे।’’ यशोदा ने कह दिया।
जब हवाई जहाज में पुनः बैठे तो नज़ीर ने पूछा, ‘‘तो आप लन्दन में विवाह करने जा रहे हैं।’’
‘‘जा रहा था। मगर...।’’
‘‘मगर क्या?’’
‘‘अब यह सब विचाराधीन हो गया है।’’
‘‘और वह लड़की। क्या नाम है? कुछ टेढ़ा सा नाम है। क्या है?
‘‘मैत्रेयी।’’
‘‘यह किस भाषा का नाम है?’’
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