उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘हम वहां तीन बजे के करीब पहुंचेंगे। चार बजे आपके वालिद साहब के घर पहुंचेगे। मैं आपके साथ चलूंगी। वहां पहुंच कर आप मुझे मेरी माँ के घर छोड़ने चलियेगा। वहां हमारी शादी हो जाएगी। शादी के बाद आप अपने वालिद साहब को टैलीफोन कर दीजियेगा। वहीं से हम ‘हनीमून’ के लिए अमेरिका चले जायेंगे। शेष बाते अमेरिका से लौटकर विचार कर लेंगे।’’
‘‘इसमें दो कठिनाइयां हैं।’’
‘‘कौन-कौन-सी?’’
‘‘एक तो यह कि मुझे अपने कार्यालय में रिपोर्ट करनी होगी और वहां से अमेरिका के लिए जाने की इज़ाजत लेनी पड़ेगी। दूसरी मुश्किल यह है कि मेरी जेब में ‘हनीमून’ पर जाने का खर्चा नहीं। मुझे धन पिताजी से लेना पड़ेगा। इसलिये उनको अपनी नक्लोहरकत बतानी पड़ेगी और उनसे खर्चा मन्जूर कराना पड़ेगा।’’
‘‘मैं समझती हूं कि मेरी माँ आपको एक हज़ार पौण्ड तक उधार दे सकेगी। पीछे उनका कर्जा अदा कर दीजियेगा।’’
इस पर तेजकृष्ण गम्भीर विचार में पड़ गया। समस्या यह थी कि शादी कैसे होगी? मैजिस्ट्रेट के सामने तो विवाह करने का नोटिस देना पड़ता है। उसमें दो सप्ताह लग जाने सहज ही थे। हिन्दू विधि से विवाह नज़ीर की माँ के घर में हो सकेगा क्या और इस्लामी ढंग के विवाह से वह मुसलमान नहीं हो जाएगा क्या?
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