उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
वह मुसलमान होना नहीं चाहता था। उसके गम्भीर विचार में निमग्न हो जाने का कारण यही था। मन में द्वन्द्व चल पड़ा था। यह द्वन्द्व अब नज़ीर और मैत्रेयी में नहीं था। यह था विवाह के विधि-विधान पर। इसमें उनके पब्लिक में व्यवहार के विषय में दुविधा उत्पन्न हो रही थी।
शेष काल जो हवाई जहाज में व्यतीत हुआ, उसमें वार्तालाप बहुत कम हुआ और जो कुछ भी हुआ, वह दोनों में विवाह के सम्बन्ध में नहीं था। जहाज में यह भोजन और अन्य सुविधाओं के विषय में होता रहा। दोनों विवाह के विषय में बात करने से बचते रहे। इसमें दोनों का उद्देश्य भिन्न-भिन्न था। तेजकृष्ण यह विचार करना चाहता था कि विवाह के विषय में कठिनाइयां कैसे पार हो सकेंगी और नज़ीर यह विचार कर रही थी कि सब कुछ निश्चय हो गया है और उसके विचारानुसार हुआ है। अब इस विषय पर बात करने से तो योजना में परिवर्तन ही होगा।
तीन बजे हवाई जहाज लन्दन के इण्टरनेशनल हवाई पत्तर पर पहुंचा। तेज का पिता के. एम. बागड़िया अपने परिवार को लेने पत्तर पर आया हुआ था। उसने सबका स्वागत किया। तेज के साथ एक अति सुन्दर लड़की को खड़े देख समझा कि वही उसकी पत्नी होने वाली है। परन्तु शकुन्तला के साथ एक अन्य लड़की को, जो तेज के समीप खड़ी लड़की की तुलना में ‘फिफ्टी परसैण्ट, ही थी, देख वह विस्मय कर रहा था कि यह कौन हो सकती है? शकुन्तला अपना प्रसव होने के उपरान्त पहली बार ही पिता से मिली थी। इस कारण मिस्टर बागड़िया ने पूछ लिया, ‘‘बेबी को साथ नहीं लायीं?’’
‘‘उसे उसकी दायी के पास छोड़ आयी हूँ।’’
तेज ने दोनों साथ आ रही लड़कियों का परिचय करा दिया। उसने मैत्रेयी के विषय में यह बताया, ‘‘पिता जी! यह आजकल ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ‘रिसर्च’ कर रही हैं और इनका नाम मैत्रेयी है।’’
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