उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
नज़ीर के विषय में उसने बताया, ‘‘यह पाकिस्तान का एक फूल है जो कहीं विदेश में लगने के लिये वहां से चला आया है।’’
यद्यपि यह परिचय सर्वथा अपूर्ण था, परन्तु वहां हवाई पत्तन पर अन्य कुछ अधिक कहने-पूछने के लिये समय नहीं था। बाहर निकलते हुए उसने पिताजी से कहा, ‘‘मैं तनिक इस लड़की को इसकी माँ के घर पहुँचा आऊं।’’
‘‘तो टैक्सी से जाओगे। यह कहां रहती है?’’
तेज बता नहीं सका। नज़ीर ने माँ के विषय में कुछ भी नहीं बताया था। अपने को बुद्ध कहे जाने से बचने के लिये उसने कह दिया, ‘‘यहां से समीप ही है। सबको घर छोड़कर इसे अपनी गाड़ी में भी छोड़ने जा सकता हूं।’’
‘‘तो चलो। मगर तेज! बहुत खूबसूरत बीवी ढूंढ़ी है। मैं तुम्हें बधाई देता हूँ।’’
तेज समझ गया कि पिताजी गलत समझे हैं। उसने चुप रहना ही उचित समझा। वह अगली सीट पर ड्राइवर के पास जा बैठा। नज़ीर उसके पास अगली सीट पर घुस गयी। शेष सब लोग पिछली सीट पर बैठे गये। सबके पास एक-एक सूटकेस और एक-एक अटैची केश था। सूटकेस गाड़ी की डिग्गी में और गाड़ी की छत पर बांध दिये गये। नज़ीर ने अपना ब्रीफ केस अपने पास अपने घुटनों पर रख लिया। तेज ने वह ब्रीफ केस अपने पास अपने घुटनो पर रख लिया। तेज ने वह ब्रीफ केस उठा अपने पास रखना चाहा तो नज़ीर ने कह दिया, ‘‘इसे यहां रहने दीजिये। यह मेरे चार वर्ष की मेहनत का नतीजा है।’’
‘‘क्या है इसमें?’’
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