उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘पाकिस्तान पर एक किताब की पाण्डुलिपि है। यह मैं पाकिस्तान में चार साल रहकर लिखती रही हूं।’’
‘‘तब तो बहुत मजेदार होगी।’’
‘‘हां। मगर इसे ‘पब्लिश’ कराने का अभी समय नहीं आया।’’
गाड़ी चल पड़ी। नज़ीर ने यह कहा और मुस्करा कर साथ बैठे तेज की ओर देखने लगी।
आधा घण्टा लगा हवाई पत्तन से छुटकारा पाने में और आधा घण्टा लगा मकान तक पहुंचने में। वहां पहुंचते ही तेज ने कहा, ‘‘मैं मिस नज़ीर को अभी इसकी माँ के घर छोड़ कर आता हूं।’’
पूर्व इसके कि कोई कुछ कहे, तेज पुनः गाड़ी की पिछली सीट पर नज़ीर के साथ बैठ गया और ड्राइवर से बोला, ‘‘हैमिल्टन स्ट्रीट’ चलो।’’
नज़ीर ने संशोधन कर दिया, ‘‘नहीं। ‘क्राफर्ड ऐवेन्यू’ नम्बर तीन सौ पाँच।’’
तेज ने तो कुछ कह देने के लिये ही ‘हैमिल्टन स्ट्रीट’ कह दिया था। वह जानता था कि नज़ीर इसका संशोधन कर देगी। वही हुआ। ड्राइवर ने प्रश्न भरी दृष्टि में तेज के मुख पर देखा तो उसने कह दिया, ‘‘हां, ठीक है चलो।’’
गाड़ी को वहां पहुंचने में एक घण्टा लगा। वह नगर के दूसरे कोने पर टेम्ज़ के पार स्थान था और साथ ही मार्ग में ट्रैफिक अधिक तथा पुल पार करने में समय लगा था।
वहां पहुँच प्रतीक्षा करती स्त्री की सूरत देखते ही तेजकृष्ण पहचान गया कि वह स्त्री नज़ीर की माँ है। गाड़ी से सूटकेस उतारते हुए ड्राइवर ने पूछा, ‘‘हजूर! कितनी देर लगेगी?’’
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