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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...

द्वितीय परिच्छेद

1

महाभारत में महर्षि व्यास कहते हैं कि राजा को नित्य देश-विदेश का इतिहास सुनना चाहिये। भारत देश का यह दुर्भाग्य है कि सन् १९१९ से लेकर सन् १९६४ तक के भारत के नेता इतिहास से सर्वथा अनभिज्ञ रहे हैं। महात्मा गाँधी एक साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति थे परन्तु इतिहास के ज्ञान में शून्य। सन् १९२२ में फिर सन् १९४७ में देशवासियों के हित-अहित का विचार छोड़ वे मुसलमानों का पक्ष लेने लगे थे। इसी प्रकार श्री जवाहरलाल नेहरू मुसलमानों और चीनियों को भारत सीमा पर आ धमकने की स्वीकृति दे बैठे थे। दोनों ने भावी भारत के लिये ऐसे कांटे बो दिये हैं कि सदियों तक भारतवासियों को चुभते रहेंगे।

भारत का दुर्भाग्य यह था कि भारत की राजनीति की डोर उन लोगों के हाथ में चली गयी जो इतिहास के ज्ञाता नहीं थे। सन् १९१९ से १९४८ के आरम्भ तक भारत पर महात्मा गाँधी छाये रहे और गाँधी जी बेचारे साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। वह मध्य एशिया के चीनियों और मुसलमानों के विषय में या तो सर्वथा अनभिज्ञ थे अथवा उनका मिथ्या ज्ञान रखते थे। यदि गाँधीजी इस्लामी इतिहास को पढ़े होते तो सन् १९२२ में खिलाफत आन्दोलन को भारत के स्वराज्य आन्दोलन से नत्थी न कर देते। इसी प्रकार यह जानते हुए भी कि भारत के प्रायः मुसलमान भारत में इस्लामी शरा का राज्य (पाकिस्तान) स्थापित करने में रुचि रखते है, वह देश-विभाजन के समय अधिक से अधिक मुसलमानों को भारत में रोक रखने के लिए जुट गये।

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