उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
तेजकृष्ण इंगलैंड की सरकार के गुप्त विभाग के मिशन पर जब भारत और चीन सीमा की अवस्था देखने चला तो उसकी अविवाहित पत्नी नज़ीर उसके साथ थी।
हवाई जहाज में बैठा हुआ तेजकृष्ण भारत-चीन की समस्या पर अपनी पत्नी नज़ीर को अपना विश्लेषण बताता हुआ पूर्वोक्त विवेचना बता रहा था। नज़ीर स्वयं इतिहास की स्नातिका होते हुए इस विवेचना में रुचि प्रकट कर रही थी। वह स्वयं भी पाकिस्तान और चीन के विषय में यही विचार रखती थी। यद्यपि उसके ऐसा विचार रखने में पाकिस्तान के सन् १९४७ से १९६२ तक के इतिहास की पृष्ठ-भूमि थी। अब उसका पति वही निष्कर्ष उसके सम्मुख रखता हुआ चीन और इस्लाम की प्रवृत्तियों का वर्णन करने लगा था।
इस कारण उसने प्रश्न कर दिया, ‘‘परन्तु ये प्रवृत्तियां भूमण्डल की वर्तमान स्थिति के सन्दर्भ में बदली नहीं?’’
‘‘जब तक स्वभाव न बदले तब तक कर्म में अन्तर नहीं आता और स्वभाव बदलने के लिये वास्तविक ज्ञान की आवश्यकता रहती है। वह न तो कम्युनिस्टों को है और न ही मुसलमानों को।
‘‘मुसलमानों का इतिहास हजरत मुहम्मद साहब के जीवन काल से आरम्भ होता है और कम्युनिस्टों के इतिहास का ज्ञान कार्ल मार्क्स के कथनों से आरम्भ होता है। ये दोनों अपने-अपने अनुयायियों के लिए परमात्मा का अवतार हैं और इनसे बड़ा भूत, वर्तमान और भविष्य में भूतल पर कोई नहीं हो सकता।
‘‘इन दोनों, मुसलमानों और कम्युनिस्टों, में एक बात सांझी है। वह यह कि इनके विचार में डण्डा सबसे प्रबल युक्ति है। इस कारण ये अपने हाथ में सदा डण्डा रखने में विश्वास रखते हैं।
‘‘इन दोनों का वास्ता पड़ा गाँधी और जवाहरलाल से जो विश्वास रखते हैं समझने-समझाने में। जिसके हाथ में डण्डा है वह दूसरे का सिर फोड़कर ही बात करता है।
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