उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘जवाहरलाल ने सन् १९४७ से १९६२ तक डण्डे के स्थान बातों का प्रयोग किया। शत्रु से तो मिन्नत-समाजत करते रहे और अपने देशवासियों को झूठ बोलकर भ्रम में डालते रहे। वास्तव में इस्लाम तथा कम्युनिज़्म नेहरूजी की कमजोरी है। दोनों प्रकार के देशों में, जहां इस्लाम का शासन है अथवा जहां कम्युनिस्ट तानाशाही है, विचार स्वतन्त्रता की स्वीकृति नहीं है। इस पर भी पंडित जवाहरलाल अंग्रेंज़ों की समालोचना तो सहन करते हैं, परन्तु इस्लाम और कम्युनिज़्म की समालोचना पर भड़क उठते हैं।’’
‘‘परन्तु यह अवस्था तो पूर्ण हिन्दू समाज की है। हिन्दू हिन्दू की निन्दा करता देखा जाता है, परन्तु नीति के विचार से अथवा जान-माल के भय के कारण मुसलमान और कम्युनिस्ट की आलोचना नहीं करता।
‘‘मैंने भारत में अंग्रेंज़ों शासन काल के इतिहास में हिन्दू-मुलसमान संघर्ष का अध्ययन किया है और उसे पढ़ने पर मैं उक्त परिणाम पर पहुंची हूं।’’
‘‘मैं आपको वर्तमान भारत की दुरावस्था में एक कारण के विषय में, जैसा मैंने अपनी पुस्तक में लिखा है, बताती हूं। यह वृत्तान्त मैंने पुस्तक के उस अध्याय में लिखा है जिसमें मैंने पाकिस्तान के बीजारोपण की बात लिखी है।
‘‘सन् १९१६ में लखनऊ में कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था। कांग्रेस ने सन् १९१५ में एक कमेटी इस उद्देश्य से बनायी थी कि वह भावी भारत के स्वराज्य की रूप-रेखा बनाये। उस कमेटी में मदनमोहन मालवीय भी थे। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बहुमत से सिफारिश की थी कि मुसलमानों के लिए भावी संविधान में पृथक् मतदाता सूची और जनसंख्या से अधिक प्रातिनिध्य दिया जाये। पंडित मालवीय जी ने इस रिपोर्ट के विरुद्घ सम्मति दी थी।
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