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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


स्टीवनसन ने हिन्दुस्तान का नक्शा खोल उँगली से कुल्लू की ओर संकेत कर बिन्दू को बताया, ‘‘मैं यहाँ जाकर रहूँगा और मेरी बिन्दू यहाँ बच्चे को जन्म देगी।’’

‘‘यहाँ से कितनी दूर होगा यह स्थान?’’

‘‘दो हजार मील।’’

‘‘तब तो ठीक है। कब चलेंगे?’’

‘‘दो दिन में हमारी मीटिंग समाप्त होगी। हम तुम्हारी सास को कलकत्ता कहकर जाएँगे और फिर इस दुनिया से विलोप हो जाएँगे।’’

जिस दिन बिन्दू को कलकत्ता के लिए जाना था, उस दिन वह स्टीवनसन के साथ मिसेज़ माइकल के निवास-स्थान पर गई। स्टीवनसन ने सोफी को बताया, ‘‘मैं इस लड़की के सम्मोहन में फँस गया हूँ। अतः इसको लेकर मैं इंग्लैण्ड जा रहा हूँ, वहाँ इससे विवाह कर लूँगा।’’

‘‘यह मान गई है?’’

‘‘नहीं, अभी नहीं।’’

‘‘तुम भी उसके साथ वही उपाय प्रयुक्त क्यों नहीं करते, जो जनरल साहब ने सोना के साथ किया है?’’

‘‘मैं डरता हूँ कि कहीं यह नाराज न हो जाए। मेरा ढंग दूसरा है।’’

‘‘आई विस यू गुड लक।’’

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