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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘थैंक यू। परन्तु तुम सोना को कुछ नहीं बताना। हमारे हिन्दुस्तान से जाने तक इसको अथवा इसके सजातियों को पता नहीं लगना चाहिए। मेरा तुमको यह बताने का प्रयोजन यह है कि कहीं इसका हसबैण्ड वहाँ लुमडिंग में आ गया। तो तुम उसको ‘मिसगाइड’ कर सको।’’

सोफी मुस्कराती हुई स्टीवनसन को देखती रही।

बिन्दू सोना से मिली। दोनों मकान के बरामदे में बैठी बातें करती रहीं।

बिन्दू ने बताया, ‘‘मास्टर कह रहे थे कि मैं वापस जा सकती हूँ। परन्तु मेरा जी दुनिया देखने को करता है। इस कारण मैंने साहब को कहा और वे मान गए हैं।

‘‘कब तक लौटोगी?’’

‘‘एक मास लग सकता है।’’

‘‘लुमडिंग आओ तो मिलना। मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी।’’

‘‘ठीक है।’’

सोना लुमडिंग गई तो उसका माइकल उसके लिए व्याकुल होता था। सोना का पति धनिक भी विकल था। दोनों प्रेमियों में वह पिसने लगी। माइकल धनिक की व्याकुलता जानता था, परन्तु धनिक को माइकल के विषय में ज्ञात नहीं था।

सोना के व्यवहार से उसको सन्देह हो गया। सोना कहती रहती थी कि अब हमारी उमर बड़ी हो गई है, इस कारण हमें संयम से रहना चाहिए। साथ ही वह कहती थी कि उसकी मालकिन उसको अपने पास रखना चाहती है।

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