उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
धनिक को सन्देह हुआ तो वह एक दिन मध्याह्न के समय जरनल की कोठी पर जा पहुँचा। सोफी लॉन में पेड़ के नीचे कुर्सी पर बैठी एक पुस्तक पढ़ रही थी। सोना घर के भीतर थी। धनिक सोफी की दृष्टि बचा कोठी में जाना चाहता था कि अर्दली ने उसको रोक दिया। धनिक ने पूछा, ‘‘क्यों, क्या बात है?’’
‘‘साहब भीतर हैं।’’
‘‘मैं अपनी बीबी से मिलना चाहता हूँ।’’
‘‘उसको खबर कर देते हैं और वह तुम्हारे घर में तुमसे मिलने के लिए आ जाएगी।’’
विवश धनिक कोठी से लौटने के लिए घूमा तो जनरल साहब कोठी से निकले। उसने धनिक को नहीं देखा और बाहर खड़े अपने घोड़े पर सवार रहो चला गया। धनिक वहीं खड़ा विचार कर रहा था कि उसी द्वार से, जिस द्वार से माइकल निकला था, सोना भी बाहर निकली। अपने पति को वहाँ खड़े देख वह झिझकी, फिर मन को दृढ़ कर उसके सामने आ खड़ी हुई। धनिक की आँखों में रक्त उतर रहा था। सोना ने भयभीत स्वर में पूछ लिया, ‘‘कैसे आए हैं?’’
‘‘घर चलो, ‘‘बताता हूँ।’’
‘‘अभी मुझे मालकिन से काम है, थोड़ी देर में आती हूँ।’’
धनिक अपने क्रोध को रोक नहीं सका। उसने सोने के मुख पर एक चपत दे मारी। सोना चक्कर खाकर भूमि पर जा गिरी। सोफी लॉन में बैठी देख रही थी। सोना गिरी तो धनिक ने उसको लातों से पीटना आरम्भ कर दिया। सोफी ने हल्ला कर दिया। कोठी पर पहरा देने वाले सिपाहियों ने भागकर धनिक को पकड़ लिया और उसको सोफी के सामने लाकर खड़ा कर दिया।
|