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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘क्यों पीट रहे हो इसको?’’ सोफी ने पूछा।

‘‘यह बदकार हो गई है।’’

‘‘तुम्हारे पास क्या प्रमाण है इसका?’’

‘‘मेरा मन कहता है।’’

‘‘यह बात गलत है।’’

‘‘नहीं सरकार। आप झूठ कहती हैं।’’

‘‘देखो, यहाँ से भाग जाओ, नहीं तो गोली ले उड़ा दिए जाओगे।’’

‘‘मैं इस औरत की हत्या करके मरूँगा। मेरे देवता का कथन असत्य नहीं हो सकता।’’

‘‘तुम पागल हो गए हो।’’ फिर सोफी ने सिपाहियों की ओर देखकर कहा, ‘‘ले जाओ इस आदमी को और जनरल साहब के सामने पेश करना।’’

सिपाही उसको हाथ-पाँव बाँधकर ले गए और वैसे ही ‘गार्ड रूम’ में डाल दिया।

सोना अभी तक अपना सिर पकड़े बरामदे में बैठी थी। सोफी ने उस को उठाया और ‘ड्राइंग रूम’ में ले गई। वहाँ बैठाकर उसने कहा, ‘‘तुम्हारे घर वाले को सन्देह हो गया है।’’

‘‘हाँ।’’

‘‘अब क्या करोगी?’’

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