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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘वह मुझको पकड़ कर मार डालेगा।’’

‘‘मैं यह नहीं पूछ रही हूँ। मैं तो पूछ रही हूँ कि तुम जाना चाहती हो क्या?’’

‘‘सरकार! मरना कौन चाहेगा?’’

‘‘वह अगर वचन दे कि तुम्हें मारेगा नहीं, तब भी जाओगी कि नहीं?’’

‘‘वह वचन तोड़कर मार डालेगा।’’

सोफी समझ गई कि औरत भयग्रस्त है और ठीक प्रकार से विचार नहीं कर सकती। इस कारण उसके चित्त को स्थिर करने के लिए अवसर देने के विचार से कहने लगी, ‘‘तुम अभी मेरे कमरे में ही काम करो। अपने घर अभी मत जाना।’’

सोना के शरीर में दर्द हो रहा था। फिर भी वह उठी और लंगड़ाती हुई सोफी के कमरे में चली गई।

सायंकाल चाय के समय माइकल आया। सोफी ने उसको पूर्ण घटना बता दी और यह भी बताया कि धनिक को ‘गार्ड रूम’ में बन्द कर रखा है। जनरल तो एक योग्य ऑफिसर था। इस घटना का भावी प्रभाव भी विचार करता था। उसने कहा, ‘‘मैंने सोना के साथ सम्बन्ध के परिणामों पर विचार किया है। यदि मैं इसके आदमी को दण्ड देता हूँ तो यह अपील करेगा, उसमें यह सोना वाली घटना बता देगा। मैं अपने अधिकारियों को इस बात का ज्ञान होने देना नहीं चाहता। यदि उसको गोली से मरवा डालूँ, तो भी हल्ला होगा और जाँच होगी। कहीं यह बात पब्लिक में फैल गई तो देश-घर में आन्दोलन खड़ा हो जाएगा। हिन्दुस्तान में जनता की अवस्था विस्फोटक हो जाएगी। अगर इसको छोड़ देता हूँ, तो यह नागजातीय कबीलों को लड़ाई पर तैयार कर देगा। इन जंगलों और पहाड़ों में लड़ाई करनी ठीक नहीं होगी।

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