उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
‘‘इस कारण मैं एक बात करने जा रहा हूँ। एक झूठा बहाना बना दूसरे कबीले को पकड़ लेना चाहता हूँ और उनको मिशनरियों के हवाले कर दूँगा।
सोफी शिलांग में हुई कान्फ्रेंस में कुछ इसी प्रकार का निर्णय कराकर आई थी। वहाँ प्रस्ताव हुआ था कि नागजातीय कबीलों को सुसंस्कृत करने के लिए इनको ईसाई बनाने का यत्न किया जाए। इसके लिए इनमें रुपया बाँटा जाए। इनकी औरतों को सभ्य बनाने के लिए उनमें कपड़े बाँटे जाएँ और इन बातों में सरकार से सहायता ली जाए।
यद्यपि इस निर्णय में सैनिक अभिनय की चर्चा नहीं थी तो भी आवश्यकता पड़ने पर सैनिक सहायता का उल्लेख था।
सोफी मुख देखती रह गई। जब चाय आई तो माइकल ने कहा, ‘‘धनिक को बुलाओ!’’
गार्ड गया और हाथ-पाँव बँधे धनिक को वहाँ ले आया। जनरल ने उसके हाथ-पाँव खोलने की आज्ञा दे दी। उसके बन्धन खोल दिए गए। जनरल ने उसको सामने रखे स्टूल पर बैठने के लिए कहा। धनिक बैठना नहीं चाहता था, किन्तु जनरल की डाँट सुनकर बैठ गया। सोफी ने अपने पति के लिए चाय बनाई। माइकल ने वह प्याला धनिक को देते हुए कहा, ‘‘इसे पियो!’’
धनिक इस सबका अभिप्राय समझ नहीं पा रहा था। विस्मय में वह मालिक और मालकिन का मुख देख रहा था। जनरल ने फिर डाँटकर कहा, ‘‘चाय पियो, इससे तुम्हारा होश ठिकाने होगा।’’
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