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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


धनिक ने चाय ले ली और एक घूँट पीकर कहने लगा, ‘‘मुझे छुट्टी दे दी जाए!’’

‘‘तुमको छुट्टी है।’’

‘‘मेरी पत्नी को मेरे साथ कर दिया जाए।’’

‘‘उसको भय है कि तुम उसको मार डालोगे। यह अपराध है। सरकार उसकी तुमसे रक्षा करना चाहती है।’’

‘‘इसका विश्वास एक ही ढँग से हो सकता है कि तुम स्टोप्स बस्ती में जाकर रहने लगो और तुम्हारी पत्नी वहाँ तुम्हारे साथ रहेगी।’’

‘‘वह तो ईसाइयों की बस्ती है। मुझको ईसाई होना पड़ेगा, नहीं तो वहाँ खाने-पीने को नहीं मिलेगा।’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं। तुम वहाँ जाकर काम कर सकते हो। तुमको वेतन मिलेगा।’’

‘‘मैं वहाँ जाने के लिए तैयार हूँ। शर्त यह है कि मेरी पत्नी को मेरे साथ भेज दिया जाए।’’

‘‘तुम वहाँ जा सकते हो। तुम्हारी बीबी को सैनिकों की सुरक्षा में वहाँ भेज दिया जाएगा।’’

‘‘मेरे साथ क्यों नहीं?’’

‘‘तुमने आज उसके साथ जो कुछ व्यवहार किया है, उसके बाद तुम पर विश्वास नहीं किया जा सकता। तुम वहाँ चलो। जब तुम्हारा दिमाग ठीक हो जाएगा, तब सोना को भेज दिया जाएगा।’’

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