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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


धनिक विचार कर ही रहा था कि वह क्या करे। जनरल का कहना मान लेने के अतिरिक्त उसको कोई अन्य उपाय प्रतीत ही नहीं हो रहा था। उसने चाय पीनी आरम्भ कर दी और पीते-पीते अपनी योजना भी बना ली। उसने कहा, ‘‘सरकार! आप बड़े लोग हैं। मैं आपसे झगड़ा नहीं कर सकता।

‘‘मैं आज स्टोप्गंज चला जाता हूँ। सोना को आप लोग कब तक भेज देंगे?’’

‘‘तुम हमारी चिट्ठी लेकर चले जाओ। दो-तीन दिन में सैनिकों के संरक्षण में हम सोना को भी भेज देंगे। तुम दोनों वहाँ मिल सकोगे और जब वहाँ के वार्डन को विश्वास हो जाएगा कि तुम दोनों में किसी प्रकार का मन मुटाव नहीं रहा, तब तुमको पृथक् मकान में रहने दिया जाएगा।’’

धनिक मान गया और बिना सोना से मिले जाने के लिए तैयार हो गया। सैनिक गार्ड उसको अपने मकान पर ले गए और जो कुछ वह वहाँ से उठाकर ले जाना चाहता था, उसको ले जाने दिया।

जब धनिक अपना सामान लेने चला गया तो सोफी ने कहा, ‘‘यह आपने क्या कर दिया? अपनी बला स्टोप्सगंज वालों के सिर पर डाल दी।’’

‘‘मुझे विश्वास है कि वह वहाँ नहीं जाएगा। यदि गया भी तो सोना वहाँ नहीं जाएगी।’’

सोफी देख रही थी कि उसका पति अभी भी इस जंगली औरत के सम्मोहन में फँसा हुआ है। वह जानना चाहती थी कि सोना क्या चाहती हैं। इस कारण वह चाय छोड़ सोना से बात करने कोठी के भीतर चली गई।

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