उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
नलिनी के मन से अभी अपने पति की करतूत का दुष्प्रभाव मिटा नहीं, था। इस कारण वह हताश कुर्सी पर बैठी तो कात्यायिनी ने पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ है ननद रानी?’’
‘‘किसको क्या हुआ है? मैं तो थककर बैठी हूँ।’’
कात्यायिनी ने उसके समीप एक अन्य कुर्सी पर बैठते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे विषय में नहीं पूछ रही। मैं कृष्णकांत के गाल के विषय में पूछ रही हूँ।’’
नलिनी ने अपनी अनभिज्ञता बताते हुए कहा, ‘‘क्या था उनके गाल को? मैंने देखा नहीं।’’
‘‘और उससे क्या करती रही हो?’’ कात्यायिनी ने एक तिपाई पर मर्करी क्रोम की बोतल, रुई का बण्डल और समीप ही बोरिक एसिड और पानी का जग तथा चिलमची पड़ी दिखा दी।
नलिनी सब सामान तिपाई पर खुला ही छोड़कर गई थी, साथ ही कात्यायिनी बिस्तर पर और भूमि पर रक्त के छींटे दिखाने लगी। इस पर नलिनी ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘भाभी! यह पढ़े-लिखे दम्पति में प्रथम झड़प के लक्षण हैं। तुमको इस विषय में पूछना नहीं चाहिए।’’
‘‘तो उससे झगड़ा भी कर बैठी हो?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘और रक्त! क्या कटा-कटी भी हुई है?’’
‘‘भाभी! बात यह हुई है कि तुमने मेरे गले में रस्सा बाँध, रस्से को एक पशु के हाथ में दे दिया है। मैं यत्न कर रही थी कि मेरे गले का रस्सा उसके साथ में होने के स्थान पर उसके गले का रस्सा मेरे हाथ में हो। इस अदला-बदली में झगड़ा होना स्वाभाविक था और यह तुम उस झगड़े के ही लक्षण देख रही हो।’’
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