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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


वह मन में विचार करती कि वे दोनों पढ़े तो एक बराबर हैं, परन्तु स्वभाव और कर्म भिन्न-भिन्न है। यह कैसे हो गया? इसका कारण वह समझ नहीं सकी। एक बात उसके मन में आ रही थी कि उसकी भाभी ठीक कहती थी कि उसने अपने को बहुत सस्ते दामों पर लुटाना आरम्भ कर दिया है। परन्तु अब लुटे माल को पुनः बटोरने की समस्या थी।

वह अब भविष्य की योजना बनाने लगी। वह कल्पना करने लगी कि वह नागपुर जाएगी। वहाँ वह किसी सरकारी स्कूल में नौकरी न कर प्राइवेट स्कूल खोलेगी। वह अपनी योग्यता से स्कूल का ऐसा प्रबन्ध करेगी कि उसके पति जैसे कई लोग उस स्कूल में वेतनधारी हो जाएँगे। वह भविष्य का एक ऐसा चित्र बना रही थी जिसमें उसके पति की नाक में नकेल होगी और वह नकेल उसके हाथ में होगी।

अपनी कल्पना को साकार करने के लिए वह योजना बनाने लगी। इस योजना का प्रथम पग था दिल्ली के स्कूल से छुट्टी पाना। दूसरा पग था शीघ्रातिशीघ्र नागपुर जाना। तदनन्तर वहाँ पहुँचकर अपना प्राइवेट स्कूल खोलने का प्रबन्ध करना।

उसने नौकरी करते हुए दो सहस्त्र रुपए से अधिक जमा कर लिया था और वह समझती थी कि इस पूँजी से वह स्कूल चला लेगी।

उसने अगले ही दिन स्कूल की नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया और वहाँ से अवकाश पाने की प्रतीक्षा करने लगी। इतना करके वह स्वयं खड़वे को पत्र-पर-पत्र लिखने लगी कि वह शीघ्रातिशीघ्र रहने योग्य मकान का प्रबन्ध कर उसे लेने चला आए।

इस सब पर एक बाधा भी खड़ी हो रही प्रतीत होने लगी। नलिनी के गर्भ ठहर गया था। अतः पूर्व इसके कि वह सक्रिय कार्य करने के अयोग्य हो वह अपनी प्राइवेट स्कूल की योजना चालू कर देना चाहती थी।

बहुत लिखा-पढ़ी हुई, परन्तु कृष्णकान्त उसे लेने नहीं आया। अतः एक दिन उसने अपने पति को लिख दिया कि वह नागपुर पहुँच रही है और स्वयं नागपुर के लिए रवाना हो गई।

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